गुरुवार, 10 सितंबर 2015

पिता ने कहा / गगन गिल

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पिता ने कहा
मैंने तुझे अभी तक
विदा नहीं किया तू मेरे भीतर है
शोक की जगह पर

2

शोक मत कर
पिता ने कहा
अब शोक ही तेरा पिता है 

 

 

जल गगन मगन / गगन गिल

 

जल गगन मगन
दुख नगन नगन
आँख जलन जलन
नींद चलन चलन

तारे भगन भगन
सपने अगन अगन
विष जलन जलन
पीर चलन चलन

पांव थकन थकन
प्यास जगन बुझन
हिचकी भरन भरन
माया हिरन हिरन

शुक्रवार, 6 अगस्त 2010

गगन गिल हिन्दी कविता की आन्ना अख्मातवा हैं। दर्द और दुःख की, पीड़ा की जो गहन अनुभूति गगन की कविताओं में है और उसकी प्रस्तुति जैसे गगन गिल करती हैं, वैसी प्रस्तुति हिन्दी के कवियों में दुर्लभ है। यह कविता पढ़े :

न मैं हँसी, न मैं रोई

न मैं हँसी, न मैं रोई
बीच चौराहे जा खड़ी होई

न मैं रूठी, न मैं मानी
अपनी चुप से बांधी फाँसी

ये धागा कैसा मैंने काता
न इसने बांधा न इसने उड़ाया

ये सुई कैसी मैंने चुभोई
न इसने सिली न उधेड़ी

ये करवट कैसी मैंने ली
साँस रुकी अब रुकी

ये मैंने कैसी सीवन छेड़ी
आँतें खुल-खुल बाहर आईं

जब न लिखा गया न बूझा
टंगड़ी दे खुद को क्यों दबोचा

ये दुख कैसा मैने पाला
इसमें अंधेरा न उजाला
गगन गिल मेरे प्रिय कवियों में से एक हैं । उनकी यह कविता पढ़ें।

बच्चे तुम अपने घर जाओ


बच्चे तुम अपने घर जाओ
घर कहीं नहीं है
तो वापस कोख में जाओ,
माँ कहीं नहीं है
पिता के वीर्य में जाओ,
पिता कहीं नहीं है
तो माँ के गर्भ में जाओ,
गर्भ का अण्डा बंजर
तो मुन्ना झर जाओ तुम
उसकी माहावारी में
जाती है जैसे उसकी
इच्छा संडास के नीचे
वैसे तुम भी जाओ
लड़की को मुक्त करो अब
बच्चे तुम अपने घर जाओ